Friday, November 15, 2019

परिवर्तन

ऊब सी गई हूँ मैं,
मुझे परिवर्तन चाहिए
इस निरस से जीवन में
नयी कोई चीज़ चाहिए

क्या है वह चीज़
वह मुझे पता नहीं
महसूस तो करती हूँ लेकिन
शब्द कुछ निकलते नहीं

मैं ये नहीं कहती
मुझे कोई दुख है
बस यही आंकना है मुझे
जो मिला अब तक क्या वो सही है

बेड़ियों से कर्तव्य लगते
जंजीर से रीति रिवाज
क्या होगा कह दूँ यदि
जाओ नहीं मनाती यह सब मैं आज

क्य़ा सब कुछ किया कराया
पानी मे मिल जाएगा
क्या मेरी मन की बात
कोई समझ पाएगा

यही, यही डर है मेरा दुश्मन
इस डर को भगाना है मुझे
जो मन चाहे मैं वो करूँ
ऐसा खुद को बनाना है मुझे

काश जो मैं कहती
वही कर पाती मैं
नहीं लगता जीवन निरस
परिवर्तन ला पाती मैं|

-जूही 

Tuesday, November 5, 2019

मेरी माँ

मेरी माँ को समर्पित....


सर्वेश्वरी वो सर्व शक्तिशाली 
मेरी माँ मेरी दुर्गा भवानी 
दृढ़ अचल, कभी ना हार मानने वाली 
प्रेरणा की स्त्रोत, सर्वाणि

छोटी उम्र में दुख का पहाड़ टूट पड़ा 
टूटी नहीं मेरी माँ, बुरे समय का रुख मोड़ दिया 
आंसू पोंछे कमर कसी, चुनौती स्वीकर की 
माँ ने जीने की एक नयी राह चुनी 

शिक्षा की थामी मशाल 
बनी सबके लिए एक मिसाल 
असतो मा सद्गमय का पाठ पढ़ाया 
कर्म ही पूजा है, हमेशा यही सिखाया 

अच्छी यादों को मान सहारा 
गौरव संग जूही का फूल उगाया 
मोनिका, कौस्तुभ, देव और केया संग 
लौट आए जिंदगी के सारे रंग 

माँ से ही परिवार जुड़ा है 
माँ से ही संसार बसा है 
मेरी माँ मेरे लिए एक वरदान है 
सच कहूँ तो मेरी माँ ही मेरी भगवान है |

-जूही 

Tuesday, February 6, 2018

टेढ़ी मेढ़ी रोटी

ज़िन्दगी के खजाने मे कुछ यादें ऐसी होती हैं जिन्हे कभी भी याद करो मन खुश हो जाता है।
अभी परसों की ही बात है, मन बहुत उदास था। बेमन मैंने रोटी बनाने के लिए आटे की एक लोई बनायी। मन तो कहीं और था, मन को बहलाना चाहा - बचपन की रोटी याद आई।

कैसे माँ से ज़िद किया करती थी “मुझे रोटी बनानी है "। माँ हमेशा बोलती "आखिरी रोटी तू बनाना "। मैं वहीं स्लैब पे बैठ के अपनी लोई हाथ में लिए  उत्सुकता से इंतज़ार करती। माँ जब सारी रोटियाँ बना लेती तो मैं पूरी तसल्ली से अपनी रोटी बनाती - हमेशा टेढ़ी मेढ़ी। माँ हमेशा तारीफ करती और मैं चिढ़ जाती, "मेरी रोटी गोल क्यूँ नहीं है? "माँ एक कटोरा लेके रोटी पे रख देती और जादू से मेरी रोटी गोल हो जाती। 

ये बात याद करके मैं हँसने लगी, बचपन की बातें कितनी मज़ेदार थीं। मेरा मन हुआ वैसी ही टेढ़ी मेढ़ी रोटी बनाने का। मुस्कुराते हुए मैंने रोटी बनानी शुरू की, बहुत कोशिश की लेकिन रोटी गोल ही बिली।  

माँ का जादू याद आया,  चाकू की नोक से अपनी गोल रोटी टेढ़ी मेढ़ी कर दी, तब जाके तसल्ली हुई।  बचपन वाली टेढ़ी मेढ़ी रोटी सेक के उदास मन खुश हो गया।