ज़िन्दगी के खजाने मे कुछ यादें ऐसी होती हैं जिन्हे कभी भी याद करो मन खुश हो जाता है।
अभी परसों की ही बात है, मन बहुत उदास था। बेमन मैंने रोटी बनाने के लिए आटे की एक लोई बनायी। मन तो कहीं और था, मन को बहलाना चाहा - बचपन की रोटी याद आई।
कैसे माँ से ज़िद किया करती थी “मुझे रोटी बनानी है "। माँ हमेशा बोलती "आखिरी रोटी तू बनाना "। मैं वहीं स्लैब पे बैठ के अपनी लोई हाथ में लिए उत्सुकता से इंतज़ार करती। माँ जब सारी रोटियाँ बना लेती तो मैं पूरी तसल्ली से अपनी रोटी बनाती - हमेशा टेढ़ी मेढ़ी। माँ हमेशा तारीफ करती और मैं चिढ़ जाती, "मेरी रोटी गोल क्यूँ नहीं है? "माँ एक कटोरा लेके रोटी पे रख देती और जादू से मेरी रोटी गोल हो जाती।
ये बात याद करके मैं हँसने लगी, बचपन की बातें कितनी मज़ेदार थीं। मेरा मन हुआ वैसी ही टेढ़ी मेढ़ी रोटी बनाने का। मुस्कुराते हुए मैंने रोटी बनानी शुरू की, बहुत कोशिश की लेकिन रोटी गोल ही बिली।
माँ का जादू याद आया, चाकू की नोक से अपनी गोल रोटी टेढ़ी मेढ़ी कर दी, तब जाके तसल्ली हुई। बचपन वाली टेढ़ी मेढ़ी रोटी सेक के उदास मन खुश हो गया।
Bahut hi achha hain.apnepan ka ahsas hua
ReplyDeleteThank you!
DeleteBahut acha...😃
ReplyDeleteवाह जूही सचमुच बचपन की याद दिला दी आपने😁
ReplyDeleteBachpan kash wapis aa pata ... Acha hai k yaadein atleast khush kar jaati hai humein ...
ReplyDeleteJab bacche the tab lagta tha ki kab bare honge Lekin abb lagta hai kyu bare ho gaye
ReplyDeleteVery nice, reminded me my childhood
ReplyDeleteThank you !
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